tarot.ideazunlimited.net.The Chariot

द चैरीओट

For English please Click here
कृपया एमेजोन से खरिदिए
कृपया फ्लिपकार्ट से खरिदिए
हमसे डायरेक्ट खरिदिए +91 9723106181


अपराईट भविष्य कथन का महत्व



दृढ़ता, जल्दबाजी में लिया गया निर्णय, उथल-पुथल, प्रतिशोध, प्रतिकूलता, नियंत्रण, इच्छाशक्ति, सफलता, कार्रवाई, दृढ़ संकल्प

यह कार्ड एक 'यस' सकारात्मक कार्ड है। जिसके जीवन रथ के सारथ्य स्वयं भगवान कृष्ण करेंगे उसे जीवन में कभी हार का सामना नहीं करना पडेगा। उनमें दिखाई देगी असीम दृढ़ता निश्चय। बस एक बार जब सोच लिया तो सोच लियासो, फिर चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए आप कार्य को अंजाम तक पहुंचाते ही हो। अगर आपको किसीने बे-वजह परेशान किया तो आप प्रतिशोध लेने से नहीं चूकते। आप एक योद्धा के भांती इंट का जवाब पत्थर से देते है। आपके जीवन का रास्ता सरल नहीं है। आपका जीवन प्रतिकुलता से भरा हुआ है। किंतु आप प्रतिकुलता में भी जीवन पर नियंत्रण रखना बखूबी जानते हैं। कृष्ण जिसका सारथ्य कर रहा है उस अर्जुन के भांति आपकी भी इच्छाशक्ति प्रचंड प्रबल है। अपनी सफलता के लिए आप किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने से नहीं डरते क्योंकि आप के सभी संकल्प दृढ़ संकल्प होते है। फिर वो जल्दबाजी में लिया गया निर्णय क्यों न हो। फिर चाहे कितनी भी उथल-पुथल क्यों न हो।

रिवर्स भविष्य कथन



पराजय, असफलता, आत्म-अनुशासन, विरोध, दिशा की कमी

आपकी जीत होने के बावजूद भी पराजय होगी। मतलब जीते तो पांडव और कृष्ण ही किंतु युद्ध मे मारे गए वो उनके भाई, गुरू, अन्य रिश्तेदार और परम स्नेही ही तो थे। साथ साथ में युद्ध में लाखो लोग मारे गए। राज तो मिला लेकिन राज लाशों के ढेर पर खडा था। इइसे बहोत बडे केनवास पर हम असफलता ही कहेंगे। आत्म-अनुशासन की वजह से हमें शायद जीत मिली लेकिन क्या यह जीत खोखली है? इसका हमे विचार करना होगा। विरोध के लिए विरोध करनेवाले बहोत मिलेंगे, किंतु चक्रधर के जैसे समझाने वाले बहोत कम मिलेंगे। अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनो। हमेशा भगवान आपका मार्गदर्शन नहीं करेंगे। अन्यथा दिशा की कमी के कारण हाथ में आई बाजी भी मन की शांती नहीं देंगे।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



द चेरिओट (या केरिओट) 'सारथी और रथ' का एक अद्भुत कार्ड है। इस यूरोपीय कार्ड का अध्ययन करने के बाद मेरी पहली प्रतिक्रिया थी, 'कोई भी बैठे हुए स्फिंक्स का रथ कैसे चला सकता है?

tarot.ideazunlimited.net.skimph

रथ का अर्थ दो या चार पहिया वाहन होता है जो दो या दो से अधिक घोड़ों के द्वारा खींचा जाता है, जिसका उपयोग प्राचीन समय से वाहन के रूप में और युद्ध में किया जाता था। यहाँ यूरोपीय कलाकार रथ के मूल अर्थ को समझने में असमर्थ हैं।

चूंकि टैरो कार्ड मिस्र से होकर गुजरता गया, इसलिए कार्डपर मिस्र की संस्कृति का स्पष्ट प्रभाव पडा है।

(सम्पूर्ण विवरण।)
tarot.ideazunlimited.net.ambari/hauda

एक व्यक्ति को शेर की स्थिति में बैठे दो स्फिंक्स के साथ गाड़ी चलाने की कोशिश करते हुए देखना मज़ेदार है।

वह अपने दाहिने हाथ में जादू की छड़ी जैसा कुछ पकड़े हुए है।

उस की पोशाक एक योद्धा की है, लेकिन उसके पास कोई हथियार नहीं है। वह स्थिर खड़ा है, अपने स्फिंक्स को नियंत्रित करने के लिए कोई लगाम नहीं है। बल्कि स्फिंक्स किसी भी तरह से रथ के साथ जुडे हुए नहीं है। यह चित्र भ्रम पैदा करता है जैसे कि योद्धा जैसा दिखने वाला व्यक्ति रथ में है।

रथ को चलने के लिए पहिए होने चाहिए, लेकिन यह वाहन स्थीर है।

रथ का आंतरिक भाग वास्तव में - हौदा/ अम्बारी - है। जो हाथी पर बैठने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु




अब मूल प्राचीन भारतीय रथ टैरो कार्ड का अध्ययन करें।

भगवान कृष्ण रथ के पीछे के मार्गदर्शक शक्ति हैं। रथ अपने पूरे शबाब पर है। मतलब हमारे जीवन की डोर स्वयं भगवान के हाथ में है।

चार सफेद घोड़े पूरी तेज गति से दौड रहे हैं। भगवान कृष्ण द्वारा निर्देशित रथ पर सवार अर्जुन लक्ष्य पर बाण ताने हुए है।

यह छवी महाभारत के युद्ध से है। यह एक बहुत ही शुभ छवि है क्योंकि युद्ध के मैदान में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को 'गीता' सुनाई थी।

गीता का महत्व हिंदुओंके लिए वही है, जो ईसाइयों के लिए पवित्र बाइबिल या मुसलमानों के लिए पवित्र कुरान का होता है।

'गीता' जीवन का दर्शन है, उसमें धार्मिक ऐसा कुछ भी नहीं है। कोई भी व्यक्ति, किसी भी धर्म को माननेवाला, गीता को किसी भी पेज से पढ़ सकता है और जीवन दर्शन को समझ सकता है।

(गीता के बारे में अल्प जानकारी वर्णित ।)

गीता के अनुसार संसार के प्रत्येक प्राणी में परमात्मा ही प्रकट हो रहा है। वही एक विश्वव्यापी चैतन्य सभी प्राणियों में कर्ता और भोक्ता के रूप में काम कर रहा है। इसलिए सबसे गहरे स्तर पर व्यक्ति की आत्मा की अलग से सत्ता नहीं है, पर सतही स्तर पर हर व्यक्ति की अपनी अलग पहचान है। जब हम 'आत्मा' की बात करते हैं तो हमारा आशय किसी विशेष शरीर से जुड़ी चेतना से होता है। बाहर से हम अलग-अलग व्यक्तियों की पहचान उनके अलग-अलग शरीरों से करते हैं। अगर हम क और ख में अंतर कर उन्हें पहचान सकते हैं, तो यह उनके अलग दिखने वाले शरीरों के ही कारण है।

वास्तव में हमारे लिए क और ख के शरीर ही क और ख हैं किंतु अंदर से सभी व्यक्ति अपने आपको अपने मन और अहंकार की गतिविधियों और अपने चित्त में उठने वाली अनुभूतियों के आधार पर जानते हैं। उनकी इंद्रियों और मन ने जो भी जानकारी एकत्रित की है उससे उनके अपने बारे में बिम्ब बने हैं और वे बिम्ब उनके अहंकार के चारों ओर बुने हुए हैं। गीता के अनुसार इन्द्रियों, मन और अहंकार का यह कार्य भी प्रकृति ही द्वारा किया जा रहा है। इस गतिविधि के बीच में उन सबके पीछे एक व्यक्ति के होने का भाव उदित होता है। यदि इन्द्रियों, मन और अहंकार को सर्वथा शांत कर दिया जाए तो उस अवस्था में एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से अलग कर देख सकने का कोई आधार नहीं होगा। इस प्रकार सतही स्तर पर इस संसार में असंख्य व्यक्ति रहते प्रतीत हो रहे हैं, पर गहरे स्तर पर वही एक चैतन्य उन सभी में अभिव्यक्त हो रहा है।

कोई एक चेतन तत्व है, जो हमारे शरीर में रहकर उसकी सभी गतिविधियों को संचालित करता है। सबसे गहरे स्तर पर रहने वाला वह तत्व शरीर में जो कुछ भी होता है उससे सदा अप्रभावित रहता है। यह चेतन तत्व सदा ही इतिहास के परे रहता है। यद्यपि यह तत्व संसार में जो कुछ भी हो रहा है उसे नियंत्रित कर रहा है, पर यह स्वयं संसार की घटनाओं से अछूता है। यह तत्व शुद्ध चैतन्य है। इस प्रकार चैतन्य में कोई इतिहास नहीं है, केवल पदार्थ में इतिहास है। यही चैतन्य हमारे शरीर के अंदर सीमित हो जाने पर हमारी आत्मा कहलाता है। शरीर की मृत्यु पर चैतन्यस्वरूप आत्मा वर्तमान शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण कर लेती है।

'मृत्यु के बाद मेरा क्या होगा?' यह प्रश्न बहुत स्वाभाविक है। किंतु इस प्रश्न में 'मेरा' शब्द उस शरीर की ओर संकेत कर रहा है, जो प्रति क्षण बदल रहा है। मेरी मृत्यु के बाद जो कुछ भी होगा, वह उसी को तो होगा जिसने मेरे जन्म के समय वह शरीर धारण किया था जिसे मैं अपना शरीर कहता आया हूं। अगर हम अपने जन्म के पहले से विद्यमान उस तत्व को जान लें तो फिर यह प्रश्न ही नहीं रहता कि मृत्यु के बाद मेरा क्या होगा, क्योंकि वही एक अपरिवर्तनशील चैतन्य सभी प्राणियों के शरीरों में अपने आपको अभिव्यक्त कर रहा है। सुख और दु:ख की यही परिभाषा है। प्यासा आदमी पानी के गिलास की तलाश करता है। यदि उसे पानी मिल जाता है तो वह सुखी होता है और न मिले तो दु:खी। कोई महत्वाकांक्षी व्यक्ति संसार का सबसे धनी मनुष्य बनना चाहता है। यदि इसमें वह सफल हो जाता है तो वह सुखी होगा और यदि असफल रहता है तो दु:खी। दोनों दशाओं में सुख और दु:ख की शर्त एक ही है- कोई अनुभूति वांछित दिशा में जा सकती है या नहीं।

जो अनुभूति किसी भी दिशा में न जाना चाहे उससे हमें न सुख मिलता है न दु:ख। जब तक हमारी अनुभूतियां दिशागत हैं, हमें सुख के साथ दु:ख का अनुभव होना स्वाभाविक है, क्योंकि हमारी अनुभूतियों की किसी विशेष दिशा में गति हमेशा सफल नहीं हो सकती। जितना अधिक हम सुख की तलाश में दौड़ेंगे, हमें उसी अनुपात में दु:ख मिलेगा। थोड़ा-सा सुख और बहुत-सा दु:ख, यह हमारे जीवन के प्रवाह का सामान्य रूप है। किसी भी व्यक्ति को जीवन में कितना सुख मिलेगा और कितना दु:ख, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी चेतना किस प्रकार की दिशाओं में गति करना चाह रही है। मनुष्य निरंतर अपनी अनुभूतियों, विचारों और उनके परिणामस्वरूप होने वाले कर्मों के बंधन में है। सब मनुष्यों की अनुभूतियां भिन्न-भिन्न होती हैं इसलिए वे भिन्न-भिन्न प्रकार के काम करते हैं। कोई संत अपने अंदर पापी व्यक्ति की अनुभूतियां नहीं जगा सकता और न पापी व्यक्ति संत की अनुभूतियां। सभी मनुष्य अपने-अपने स्वभाव से बंधे हैं, जो उनके अंदर विद्यमान अनुभूतियों से निर्धारित होता है। और ये अनुभूतियां किसी ऐसी शक्ति के द्वारा उत्पन्न होती हैं जिस पर उनका कोई बस नहीं है। दूसरे शब्दों में, जिसे मनुष्य अपना जीवन कहता है वह किसी और शक्ति के द्वारा जिया जा रहा है। होना भी ऐसा ही चाहिए। हम में से किसी का भी इस संसार में पैदा होने में कोई हाथ नहीं था इसलिए जिसे हम अपना जीवन कहते हैं, वह हमसे ऊपर की किसी शक्ति का खेल है। गीता कहती है, 'परमात्मा सब प्राणियों के अंदर निवास करता है। वह सभी प्राणियों को ऐसे घुमा रहा है मानो वे यंत्र-चालित हों।' हम अपने जीवन को इस विशाल परिप्रेक्ष्य में देखकर ही समझ सकते हैं।

अनुभूतियों के इस सतत संघर्षमय जीवन में कुछ व्यक्तियों में, सब में नहीं, जीवन की दौड़-भाग से ऊपर उठकर अपने मूल रूप को जानने की तथा स्थायी शांति और सुख और सच्ची स्वतंत्रता पाने की अभिलाषा जगती है। गीता का कहना है कि यह अभिलाषा तभी पूरी होगी जब मनुष्य अपने जीवन के मूल स्रोत की ओर जाए, जो अपरिवर्तनशील और शाश्वत विश्व चैतन्य में है। पर अपने अंदर विद्यमान दिव्य तत्व तक पहुंचा कैसे जाए?

अवश्य ही पहली बात तो यह समझने की है कि जिन्हें हम अपने कर्म कहते हैं, वे हमसे ऊपर की किसी शक्ति द्वारा किए जा रहे हैं, पर हमें लगता तो यह है कि अपने सभी काम हम स्वयं कर रहे हैं इसीलिए हम उनके प्रति अपनी जिम्मेवारी समझते हैं और जब भी हमारे कामों का कोई अच्छा परिणाम निकलता है तो उसका श्रेय लेना चाहते हैं। हमारी सारी न्याय-व्यवस्था इसी धारणा पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी है। गीता के अनुसार ऐसा हमें इसलिए प्रतीत होता है कि हमारी दृष्टि अहंकार से आच्छादित है। इस अहंकार को समझने की आवश्यकता है, क्योंकि इसी के सहारे उसे समझा जा सकता है जिसे हम अपना आपा या अस्मिता कहते हैं।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

जस्टिस

द हैंग्ड मैन

द डेथ

टेम्परंस

द डेविल

द टावर

द स्टार

द मून

द सन

जजमेंट

द वर्ल्ड

एस ऑफ कप्स

टू ऑफ कप्स

थ्री ऑफ कप्स

फोर ऑफ कप्स

फाइव ऑफ कप्स

सिक्स ऑफ कप्स

सेवन ऑफ कप्स

एट ऑफ कप्स

नाइन ऑफ कप्स

टेन ऑफ कप्स

पेज ऑफ कप्स

नाईट ऑफ कप्स

क्वीन ऑफ कप्स

किंग ऑफ कप्स

एस ओफ स्वोर्ड्स

टू ओफ स्वोर्ड्स

थ्री ओफ स्वोर्ड्स

फोर ओफ स्वोर्ड्स

फाईव ओफ स्वोर्ड्स

सिक्स ओफ स्वोर्ड्स

सेवन ओफ स्वोर्ड्स

एट ओफ स्वोर्ड्स

नाइन ओफ स्वोर्ड्स

टेन ओफ स्वोर्ड्स

पेज ओफ स्वोर्ड्स

नाईट ओफ स्वोर्ड्स

क्वीन ओफ स्वोर्ड्स

किंग ओफ स्वोर्ड्स

एस ओफ वांड

टू ओफ वांड

थ्री ओफ वांड

फोर ओफ वांड

फाइव ओफ वांड

सिक्स ओफ वांड

सेवन ओफ वांड

एट ओफ वांड

नाइन ओफ वांड

टेन ओफ वांड

पेज ओफ वांड

नाईट ओफ वांड

क्वीन ओफ वांड

किंग ओफ वांड

एस ऑफ पेंटाकल्स

टू ऑफ पेंटाकल्स

थ्री ऑफ पेंटाकल्स

फोर ऑफ पेंटाकल्स

फाईव ऑफ पेंटाकल्स

सिक्स ऑफ पेंटाकल्स

सेवन ऑफ पेंटाकल्स

एट ऑफ पेंटाकल्स

नाइन ऑफ पेंटाकल्स

टेन ऑफ पेंटाकल्स

पेज ऑफ पेंटाकल्स

नाईट ऑफ पेंटाकल्स

क्वीन ऑफ पेंटाकल्स

किंग ऑफ पेंटाकल्स